Wednesday, September 15, 2010

याद दिलाती है वो, हसीन शाम की



सोचती हूँ जब मैं,
वो हसीन शाम की |
एक पल में हम यु खो जाते थे
दूजे पल में यु दूर हो जाते थे
गहराइया कितनी थी,
वो हसीन शाम की |

वो रस्ते पे पथिक का हमें निहारना ,
फिर डर के यु छुप जाना |
अपनों से झूठ पे झूठ बोल जाना ,
नींद में भी बस , उसकी आहटो का आवाज़ आना |
वो तिलमिलाती गर्मियों में भी मिलने जाना
याद दिलाती है वो हसीन शाम की |

ठहर जाती हूँ मैं,
एकदम सी
वो यादो के कुछ पल में !
अकेले में यु मुस्कुराना ,
कोई जब पूछे तो यु ही टाळ जाना |
क्यों इतनी याद आती है वो हासीन शाम की
डर लगता है
कही , रूठ न जाये मुझसे

मेरी वो यादें
उस हसीन शाम की |

Sunday, May 9, 2010

आखिर तुम्हे मैं क्या बताऊ मेरा चंचल मन


आखिर तुम्हे मैं क्या बताऊ मेरा चंचल मन
कभी आसमा को छु लेना चाहु
कभी मदहोश हवाओ से बाते करना चाहु
कभी पंछियों की तरह उड़ना चाहु
कभी कुछ भी कर गुजर लेना चाहु
जहाँ ,पंछिया अपने राग में गाती हो
हवाए अपनी ही तान सुनाती हो
जहाँ , भवरे फु्लो के साथ इठलाती हो
बरखा की बुँदे छमछम करते अपनी राग में गाती हो
और सूर्य की किरणे हमको जगती हो
आखिर तुम्हे मैं क्या बताऊ मेरा चंचल मन

Friday, May 7, 2010

नम आँखे ढूँढ रही थी !



It just about the feelings of those couple who are very close to each-other's heart
and suddenly one of them came to know
that the love is no more on earth..........................

सारे लोग वही थे
बस गमशुम सी ढूढ़ रही थी मेरी वो नम आँखे
उधर दरवाजे की खटखटाहट आई,मैंने दरवाज़े से आवाज़ लगायी
सब कुछ गुजर चूका था यादो की उस रात में
एक आंधी सी आई थी , मैंने उस रात को किस तरह बितायी थी
शायद वो मेरी किस्मत का होना था, और बस मुझे जिन्दगी भर का रोना था
मेरी यादो की दौड़ में सब कुछ निकल चूका था
बस पड़ी थी मैं और मेरी वो यादे
सुनसान सी हवेली में कोई अपना सा ना था
सारे तो अपने थे फिर भी ढूँढ रही थी मेरी वो नम आँखे
फिर मुझे लगा कोई तो आया है
ये क्या ये तो उसके मौत का पैगाम लाया है
उससे अपने आगोश में लील चूका था
फिर भी ढूँढ रही थी मेरी वो नम आँखे !

मेरी संवेदना



मेरी संवेदना ने मुझे पुकारा .
मेरी संवेदना ने मुझे ललकारा
मुझे खुश देखकर उसे हैरत होती थी ,
और अपनी ख़ुशी पर खुद मुझे फक्र होती थी.
फक्र करना एक फितरत सी बन गयी थी .
फिर मुझे एहसास हुआ मेरी असंवेदनशील संवेदना का राज़ क्या है .
आखिर कुछ दिनों में मैंने ढूँढ निकला,
मुझे नहीं चाहिए थी वो घर, वो बंगला, वो गाड़ी,
मुझे बस चाहिए थी मैं और मेरी संवेदनशील सुकून,
जिसमे जिन्दा रह सके मैं और मेरा जूनून.