Wednesday, September 15, 2010

याद दिलाती है वो, हसीन शाम की



सोचती हूँ जब मैं,
वो हसीन शाम की |
एक पल में हम यु खो जाते थे
दूजे पल में यु दूर हो जाते थे
गहराइया कितनी थी,
वो हसीन शाम की |

वो रस्ते पे पथिक का हमें निहारना ,
फिर डर के यु छुप जाना |
अपनों से झूठ पे झूठ बोल जाना ,
नींद में भी बस , उसकी आहटो का आवाज़ आना |
वो तिलमिलाती गर्मियों में भी मिलने जाना
याद दिलाती है वो हसीन शाम की |

ठहर जाती हूँ मैं,
एकदम सी
वो यादो के कुछ पल में !
अकेले में यु मुस्कुराना ,
कोई जब पूछे तो यु ही टाळ जाना |
क्यों इतनी याद आती है वो हासीन शाम की
डर लगता है
कही , रूठ न जाये मुझसे

मेरी वो यादें
उस हसीन शाम की |

5 comments:

  1. gud one priyanka..u become a writer now..

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  2. kya baat hai poet ma'am..... waise ye topic aapko milta kahan se hai ??

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  3. ठहर जाती हूँ मैं,
    एकदम सी
    वो यादो के कुछ पल में !
    अकेले में यु मुस्कुराना ,
    कोई जब पूछे तो यु ही टाळ जाना |

    .... कोमल प्यारभरे लम्हों का सुन्दर चित्रण ... प्यार में यह डर ही तो है जो एक-दूजे को प्यार की डोर से बाँधें रखता है ...
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...हार्दिक शुभकामनाएं

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