Wednesday, September 15, 2010

याद दिलाती है वो, हसीन शाम की



सोचती हूँ जब मैं,
वो हसीन शाम की |
एक पल में हम यु खो जाते थे
दूजे पल में यु दूर हो जाते थे
गहराइया कितनी थी,
वो हसीन शाम की |

वो रस्ते पे पथिक का हमें निहारना ,
फिर डर के यु छुप जाना |
अपनों से झूठ पे झूठ बोल जाना ,
नींद में भी बस , उसकी आहटो का आवाज़ आना |
वो तिलमिलाती गर्मियों में भी मिलने जाना
याद दिलाती है वो हसीन शाम की |

ठहर जाती हूँ मैं,
एकदम सी
वो यादो के कुछ पल में !
अकेले में यु मुस्कुराना ,
कोई जब पूछे तो यु ही टाळ जाना |
क्यों इतनी याद आती है वो हासीन शाम की
डर लगता है
कही , रूठ न जाये मुझसे

मेरी वो यादें
उस हसीन शाम की |