सोचती हूँ जब मैं,
वो हसीन शाम की |
एक पल में हम यु खो जाते थे
दूजे पल में यु दूर हो जाते थे
गहराइया कितनी थी,
वो हसीन शाम की |
वो रस्ते पे पथिक का हमें निहारना ,
फिर डर के यु छुप जाना |
अपनों से झूठ पे झूठ बोल जाना ,
नींद में भी बस , उसकी आहटो का आवाज़ आना |
वो तिलमिलाती गर्मियों में भी मिलने जाना
याद दिलाती है वो हसीन शाम की |
ठहर जाती हूँ मैं,
एकदम सी
वो यादो के कुछ पल में !
अकेले में यु मुस्कुराना ,
कोई जब पूछे तो यु ही टाळ जाना |
क्यों इतनी याद आती है वो हासीन शाम की
डर लगता है कही , रूठ न जाये मुझसे
मेरी वो यादें
उस हसीन शाम की |
gud one priyanka..u become a writer now..
ReplyDeletetoo good dost.
ReplyDeleteNice poem.Keep it up.
ReplyDeletekya baat hai poet ma'am..... waise ye topic aapko milta kahan se hai ??
ReplyDeleteठहर जाती हूँ मैं,
ReplyDeleteएकदम सी
वो यादो के कुछ पल में !
अकेले में यु मुस्कुराना ,
कोई जब पूछे तो यु ही टाळ जाना |
.... कोमल प्यारभरे लम्हों का सुन्दर चित्रण ... प्यार में यह डर ही तो है जो एक-दूजे को प्यार की डोर से बाँधें रखता है ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...हार्दिक शुभकामनाएं